Columbus biography in hindi
महान समुद्री खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस का इतिहास
अमेरिका की खोज
11 अक्टूबर को कोलंबस ने घोषणा की, कि दूर उन्हे रौशनी टिमटिमाते दिखी है उन्होने रौशनी का पीछा किया। 12 अक्टूबर की रात दो बजे जहाजी चिल्लाने लगे, जमीन-जमीन जहाज पर उत्सव का माहौल बन गया था। जहाज रुकने के बाद कोलंबस उस धरती पर सबसे पहले उतरा। कोलबंस ने घोषणा की कि आखिर मैने सिद्ध कर दिया कि पश्चिम से यात्रा करके पूरब तक पहुँचा जा सकता है।
कोलंबस ने सोचा कि, वह इंडिया आ गया है जबकी वह दक्षिण अमेरिका की ओर पहुँच गया था। लिहाज़ा ये भी उसके लिये नई दुनिया थी। वहाँ के स्थानिय लोगों ने उसका स्वागत किया और उपहार में सोने चाँदी दिया। चुंकि कोलंबस इंडिया की खोज में निकला था, तो उसने वहाँ के निवासियों को इंडियन कहा था, इसलिये आज भी दक्षिण अमेरिका के मूल निवासी को रेड इंडियन कहा जाता है।
💡 आज हम जिस अमेरिका को जानते हैं हकीकत में कोलंबस वहां नहीं पहुंचा था, बल्कि उसने आस-पास के द्वीपों और साउथ अमेरिकामें कदम रखे थे। लेकिन चूँकि ये सभी जगहें आस-पास या आपस में कनेक्टेड हैं इसलिए डिस्कवरी ऑफ़ अमेरिका का क्रेडिट कोलंबस को जाता है।
कुछ दिन यहाँ रुकने के बाद उसका काफिला आगे बढा और कोल्बा पहुँचा जिसे आज क्यूबा के नाम से जाना जाता है। क्रिसमस के दिन कोलंबस सांता मारिया पहुँचा उसने इस जगह को इस्तापोलियाना नाम दिया। यहाँ उसने लकड़ी का एक विशाल भवन बनवाया था। सफर के दौरान हैती में उसकी मुलाकात तैनियो अरावांक कबीले के लोगों से हुई, यहाँ से उसने अपार धन सम्पदा स्पेन ले गया। उसके आगमन का राजा-रानी ने भी स्वागत किया और जश्न भी मनाया गया। कोलंबस का सपना साकार हो गया था। उसे अनेक सम्मान के साथ एडमिरल कोलंबस की पदवी से नवाज़ा गया।
कोलंबस की दूसरी समुद्री यात्रा और क्रूरता के आरोप
महत्वाकांक्षी कोलंबस अपनी इस उपलब्धी से उत्साहित होकर दूसरी यात्रा की तैयारी करने लगा। एडमिरल कोलंबस 23 सितंबर 1493 को 17 जहाज और 1500 लोगों के साथ दूसरी यात्रा पर निकला। इसबार उसका बड़ा इस्तापोलियाना जल्दी पहुँच गया क्योंकि पूर्व की यात्रा से रास्ता पता चल चुका था। इसबार इस्तापोलियाना में उसको संघर्ष का सामना करना पड़ा। पिछला घर टूट जाने से उसने वहाँ अपना एक नया घर बनाया, जिसका नाम इसाबेला रखा।
इसाबेला पर अब स्पेन का अधिकार हो गया था। सफर के दौरान जहाँ भी कोलंबस रुका वहाँ उसने स्पेन का झंडा लगा दिया। इस तरह स्पेन का अधिकार क्षेत्र बढता जा रहा था। लेकिन इसके साथ ही हर जगह काफी कत्लेआम भी कोलंबस के द्वारा हुआ, जिसकी शिकायतें स्पेन लगातार पहुँच रही थी। कोलंबस के खिलाफ भ्रष्टाचार, क्रूरता एवं स्थानीय लोगों को दास बनाकर बेचने के आरोप थे। इस कारण दूसरी यात्रा की वापसी पर उसका स्वागत बहुत ठंडा रहा।
कोलंबस की तीसरी समुद्री यात्रा और गिरफ्तारी
इसी बीच ये खबर आ रही थी कि, पुर्तगाल नाविक वास्कोडिगामा (Vasco Da Gama) भारत की खोज पर निकल चुका है। लिहाजा स्पेन को कोलंबस की जरूरत थी इसलिये नई खोज के लिये वो अपनी तीसरी यात्रा के लिये निकला। हालांकी कोलंबस के नाम अमेरिका और वेस्टइंडीज के तमाम द्वीपों और देशों को खोजने का श्रैय इतिहास के पन्ने पर लिखा जा चुका था।
कोलंबस के क्रूरता पक्ष का अवलोकन तीसरी यात्रा में देखा जा सकता है। अटलांटिक से आगे बढने पर जहाज में ही विद्रोह हो गया था। जहाजियों ने कोलंबस के साथ काम करना मना कर दिया था। परंतु कोलंबस ने उनको साथ में काम करने के लिये मना लिया। सफर आगे बढने पर कोलंबस को तीन पहाड़ियों के बीच जमीन दिखी, जिसे उसने त्रिनिडाड नाम रखा। इसी बीच इस्तापोलियाना में हालात बहुत बिगड़ चुके थे, जहाँ कोलंबस को जाना पड़ा, जबकि वो अब वहाँ जाना नही चाहता था।
वैसे इसबार इस्तापोलियाना की बिगड़ी स्थिती को काबू करने में कोलंबस असर्मथ रहा और वहाँ की स्थिती काबू करने के लिये ईमानदार उच्चाधिकारी बोबाडिला को भेजा गया। सबूतों के आधार पर कोलंबस और उसके भाई को हथकड़ी बाँधकर स्पेन ले जाया गया।
उस समय कोलंबस की उम्र 53 साल हो गई थी। कोलंबस ने अपनी खोज के कारण जो प्रसिद्धी पाई थी वो उसकी क्रूरता के कारण धुमिल हो गई थी। हालांकी स्पेन के साथ-साथ कोलंबस ने भी धन खूब कमाया था। स्पेन पहुँचकर कोलंबस ने माफी की गुहार की, जिससे वहाँ के राजा ने माफ कर दिया तथा तत्काल हथकड़ी खोलने का आदेश भी दिया। राजा ने माफ तो कर दिया परंतु चौथी यात्रा पर उसे जाने का आदेश दे दिया जबकी उम्र कीअधिकता के कारण कोलंबस यात्रा पर जाना नही चाहता था। फिर भी उसे चौथी यात्रा के लिये निकलना पड़ा।
कोलंबस की चौथी समुद्री यात्रा
कोलंबस अपने अनुभव तथा समुद्री ज्ञान की वजह से तुफानों की गणना एंव मौसम की भविष्यवाणी बहुत सटीक करता था। यात्रा की शुरुवात में ही कोलंबस ने भविष्यवाणीं कर दी थी कि, बहुत भयकंर तूफान आने वाला है और ये तुफान इतिहास का सबसे खतरनाक तूफान था।कोलंबस के मना करने पर भी बोबाडीला अनेक जहाजों का काफीला लेकर स्पेन के लिये निकला, जिसमें से 27 जहाज डूब गये। बोबाडीला किसी तरह से बचते हुए स्पेन पहुँचा, लेकिन स्पेन के पास ही उसका जहाज जो तमाम जेवरातों से लदा हुआ था डूब गया। उसके खजाने की खोज वर्तमान में भी जारी है।
वहीं कोलंबस तुफानी खतरे को देखते हुए रियो जेना में रुक गया था और तूफ़ान गुजरने के बाद यात्रा आरंभ की। इस यात्रा के दौरान कोलंबस जमैका में डेढ साल तक रुका रहा। उसने घोषणा की थी कि, 29 फरवरी, 1504 को सूर्यग्रहण होगा और ऐसा ही हुआ। कोलंबस समुद्री हलचल के साथ सूर्य और चन्द्रमा की गतिविधियों का भी ज्ञाता था।
कोलंबस की मृत्यु व विवाद
7 नवम्बर 1504 को कोलंबस स्पेन पहुँच गया था। वित्तिय तौर पर मजबूत कोलंबस उस समय स्वाथ्य से बेहद कमजोर हो गया था। मलेरिया जैसी कई बिमारियों ने उसे जकड़ लिया था। 20 मई 1506 में 55 साल की उम्र में कोलंबस इहलोक से परलोक की यात्रा पर निकल गया। कोलंबस के मन में ये कसक रह गयी थी कि, स्पेन के राजा ने वादे के अनुसार उसके द्वारा लूट की हुई सम्पत्ती का दसवां हिस्सा नही दिया।
कोलंबस का भारत की खोज का सपना भी पूरा न हो सका क्योंकि पुर्तगाल निवासी वास्कोडिगामा ने 1498 में भारत की खोज पूर्ण कर ली थी। जीवनभर यात्रा करने वाले कोलंबस को कब्र में भी चैन से रहने नही दिया गया। ये जानकर हैरानी होगी कि, जन्म की तरह उसकी कब्र का कोई स्थाई साक्ष्य नही है। उसकी कब्र को कईबार खोदा गया। कई बार उसे अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया। दरअसल आज किसी को भी पता नही है कि, कोलंबस कहाँ दफन है।
कोलंबस की मृत्यु के बाद उसके अवशेष स्पेन के मठ कारटूजा में रखे हुए थे। 100 साल बाद इसे सेंट डोमिंगो में दफन कर दिया गया था। 1795 में जब फ्रांस सरकार ने इस्तापोलियाना पर कब्जा कर लिया तो, कब्र को खोदकर कोलंबस के अवशेष को क्यूबा में दफनाया गया। 1897 में अमेरिका और स्पेन के युद्ध के बाद क्युबा स्वतंत्र हो गया। कोलबंस की कब्र फिर खुदी और इसे स्पेन के सेविले के कैथेड्रेल भेज दिया गया। बाद में लोगों ने शक जाहिर किया कि, कोलंबस के अवशेष असली नही हैं और डीएनए की मांग की गई। परंतु सेंट डेमिंगो की सरकार इसके लिये राजी नही हुई और मान लिया गया कि, दोनो ही जगह कोलंबस की कब्र है।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, कोलंबस की अमेरिका खोज का दुनिया पर व्यापक असर पड़ा। वेस्टर्न दुनिया, जो पन्द्रहवी सदी का तक सबके लिये अनजानी थी। अचानक कोलंबस की मेहनत की वज़ह से कामयाब हो गई। आज जो दुनिया दिख रही है उसमें कोलंबस का अहम योगदान है। यूरोप में भले ही किसी जमाने में उसकी छवी को दागदार माना गया हो। फिर भी कोलंबस वो महानायक है जिसने विश्व के मानचित्र में ऐसे द्विपों और देशों का परिचय करवाया जिससे दुनिया अंजान थी। कोलंबस यूरोप की महान सम्मानित शख्सियतों में से एक है। आज भी पूरे अमेरिका में लोग अक्टूबर के दूसरे सप्ताह के सोमवार को कोलंबस दिवस मनाते हैं। इस दिन अमेरिकी सरकार ने सार्वजनिक अवकाश भी घोषित कर रखा है।
जितने द्वीप और क्षेत्र कोलंबस ने अपने जीवन में खोजे और जितनी यात्राएं की, उतनी मानव इतिहास में किसी ने न की होगी। इतिहास के पन्नों में कोलंबस के साहसिक खोज को सम्मान से लिखा गया है। कोलंबस ने सिद्ध कर दिया कि –
सफलता उनको ही मिलती है जिनमें अपने सपनों को पूरा करने के लिये जोश एवं जुनून होता है।
- Read History of Columbus on Wikipedia (English)
अनिता शर्मा
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